बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 शारीरिक शिक्षा - खेलों में पेशीगति विज्ञान एवं जैव यान्त्रिकी बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 शारीरिक शिक्षा - खेलों में पेशीगति विज्ञान एवं जैव यान्त्रिकीसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 शारीरिक शिक्षा - खेलों में पेशीगति विज्ञान एवं जैव यान्त्रिकी - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- घर्षण बल से आप क्या समझते हैं? खेलकूद में घर्षण के सिद्धान्तों का प्रयोग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
घर्षण बल
“घर्षण हरकत या संचलन के लिए प्रतिरोधक होता है, घर्षण सदैव दो सतहों के मिलने के फलस्वरूप होता है।"
यान्त्रिकी के इस सिद्धान्त के व्यावहारिक पहलू को आम जीवन के साथ-साथ खेल परिस्थितियों में भी देखा जा सकता है। टूटी सड़क पर किसी भी वाहन को तीव्र गति से चलाने में कठिनाई होती है। वाहन की चाल अपेक्षाकृत कम हो जाती है क्योंकि सड़क की सतह टूटी-फूटी होने के कारण हरकत अर्थात् वाहन की चाल बाधित होती है। इसके विपरीत किसी वाहन को यदि एक बहुत अच्छी सड़क पर चलाया जाय तो अपेक्षाकृत कम प्रयास से ही उसकी गति तेज होती है। क्योंकि हरकतों के लिए कोई बाधा नहीं उत्पन्न हो रही है।
इसी प्रकार जब धावन पथ की सतह ढीली-ढाली रहती है तो उस पर तेज़ दौड़ने में बाधा पहुँचती है और उसका कारण भी ट्रैक की सतह है तथा इसके विपरीत यदि ट्रैक की सतह कठोर है तो उस पर धावक तेज दौड़कर अच्छा समय देता है।
हाकी खेल के साथ भी घर्षण सिद्धान्तों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ज्यों-ज्यों हम कृत्रिम मैदानों का प्रयोग कर रहे हैं। घर्षण के अभाव में खेल की गति तेज होती जा रही है। फुटबॉल का खेल प्रायः वर्षा ऋतु का खेल है। इस समय फिसलने का भय रहता है। अतः फिसलने से बचने के लिए फुटबाल एवं क्रिकेट के शूज के शोल में गुटके लगे होते हैं। ताकि घर्षण की मात्रा बढ़ायी जा सके और गिरने से बचा जा सके।
घर्षण का प्रभाव चार तत्त्वों पर निर्भर करता है-
1. पदार्थ - वह पदार्थ जिनमें दो सतहों का निर्माण हुआ हो तथा वे अपनी प्रकृति के अनुरूप आपस में संघात की स्थिति में हो।
2. सतह की प्रकृति - दो सतहों का खुरदुरापन घर्षण की तीव्रता को बढ़ा देता है। यदि सतह की प्रकृति अधिक खुरदुरी होगी तो घर्षण अधिक होगा तथा जब सतह कम खुरदुरी होगी तो कम घर्षण होगा।
3. बल - वह बल जो दो सतहें, एक-दूसरे पर डालती हैं। उनसे भी घर्षण पर प्रभाव पड़ता है।
4. दोनों सतहों का अनुपातिक प्रभाव या क्रिया - घर्षण में प्रयुक्त बल की वह मात्रा है जो किसी घड़ी या वस्तु पर लगाया जाता है और जो हरकत प्रारम्भ करने या फिसलन हेतु दो सतहें एक- दूसरे पर डालती हैं।
दोनों सतहें जो बल एक-दूसरे पर डाल रही हैं वह बल एक बिन्दु पर भी पड़ सकता है और बड़े धरातल पर भी पड़ सकता है। व्यवहार में दोनों सतहों का आनुपातिक बल सदैव समान रहता है। दोनों सतहों के एक-दूसरे के विपरीत दबाव हेतु जो बल लगाया जाता है उसे 'W' और हरकत प्रारम्भ करने के लिए जो बल लगता है। उसे 'P' कहते हैं। Wand P का सम्बन्ध P/W = C करके दर्शाया जा सकता है। C दोनों सतहों के बीच के सहयोग की मात्रा को दर्शाता है।
यदि C का मान अधिक है तो दो सतहों का घर्षण अधिक होगा। दूसरे शब्दों में जितना ही अधिक बल फिसलने के लिए लगाया जाता है। उतनी ही अधिक मात्रा में दोनों सतहों का घर्षण होगा।
खेलकूद में घर्षण के सिद्धान्तों का प्रयोग
मुख्यतः इसके दो पहलू हैं-
1. प्रथम पहलू - इसका प्रथम पहलू Sleeping, starting, stoping, turning and charging की समस्या से सम्बन्धित हैं। इन हरकतों में पैरों की अच्छी पकड़ गिरने से बचने के लिए आवश्यक है। इसके लिए सतह तथा जूतों दोनों का प्रभावशाली ग्रिप का योगदान है। यदि दोनों प्रभावशाली होंगे तो उनके सहयोग की मात्रा ऊँची होगी। इसी कारण स्पाइक football shoses के साथ साथ खुरदुरे सोल के जूतों का प्रयोग किया जाता है और जिन खेलों में इनकी आवश्यकता होती है उसी के अनुरूप खेल कम्पनियाँ ध्यान रखती हैं।
इसी दिशा में Starting, Stoping एवं दिशा बदलने के मूल कौशलों पर और अधिक बल देना अपेक्षित है। इन मूल कौशलों पर ध्यान देकर सन्तुलन विषयक समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। जूतों के पकड़ की क्षमता तथा खेल मैदानों का प्रकार कैसा भी क्यों न हो इन मूल कौशलों पर ध्यान देकर फिसलने एवं गिरने पर कारगर ढंग से अंकुश लगाया जा सकता है।
2. दूसरा पहलू - घर्षण के सिद्धान्तों का दूसरा पहलू घर्षण के दो सतहों के फैलाव से सम्बन्धित है। इसमें दो सतहें फैली हुई हो सकती हैं। या एक बिंदु पर केन्द्रित हो सकती है। यदि कुल बल एक सतह पर पड़ रहा है तो इसका प्रभाव उतना नहीं होगा जितना कि एक बल का एक बिन्दु पर पड़ने से होगा। अतः उन खेलों में जहाँ Body Contact अधिक है। वहाँ बल Force बड़े क्षेत्र पर पड़ने से ही भला होता है। खेल उपकरण ऐसे होने चाहिए ताकि बल को सहन करने के लिए बड़ा क्षेत्र प्रदन करें।
जैसे- बॉक्सिंग के ग्लब्स, क्रिकेट में विकेट कीपिंग के ग्लब्स आदि बल के प्रभाव को सहन करने के लिए अन्य उपकरणों में आवश्यकतानुसार स्पन्दन या रबर आदि का प्रयोग होता है।
तृतीय गति के फलस्वरूप कुछ Forces उत्पन्न होती है। यह Forces कुछ खेल में सहयोगी होते हैं तथा कुछ में बाधा उत्पन्न करते हैं। ये बल दो प्रकार के होते हैं-
(1) अभिकेन्द्रीय बल तथा
(2) दूसरा अपक्रेन्दीय बल।
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